________________ (54) प्रतिष्ठित है / दूसरा मन्दिर गोडीपार्श्वनाथ का है, जिसको सं० 1850 में सूर्यपुर वासिनी हेमकोर सेठाणीने बनवाया है। यह मन्दिर आणंदजी कल्याणजी की पेढी को सुपुर्द होने से उनने उसको अन्दाजन एक लाख रुपया लगा कर फिरसे दो मंजिला बनवाया और सं० 1991 (गुजराती 1990) ज्येष्ठसुदि 11 शनिवार के दिन महामहोत्सव के साथ श्रीगोडीपार्श्वनाथ की श्यामवर्ण की चार फुद् बडी प्राचीन प्रतिमा विराजमान की है। यह प्रतिमा वैराटनगर (धोलका) के जैनमन्दिर से यहाँ लाई गई है / इनके सिवाय खरतरगच्छीय यतिलखमीचंदजी के उपाश्रय की मेडी पर श्रीशान्तिनाथ की प्रतिमा, और ललितासर के तट पर एक छोटी देवकुलिका में आदिनाथप्रभु के चरण स्थापित हैं / यह देवकुलिका खुली न रहने के कारण दर्शकों को आदिनाथ-चरण के दर्शन का लाभ नहीं मिलता। ललितसर तालाव वस्तुपाल तेजपालने अपनी स्त्री 'ललितादेवी' के नामसे बनवाया था, जो इस समय भग्नाऽवशिष्ट है / शहर के बाहर की धर्मशालाओं में यहाँ छे जिनालय हैं-सेठ नरसीनाथा की चेरीटी धर्मशाला के ऊपरी होलमें गृहमन्दिर, जिसमें वादामीवर्ण की तीन फुट बड़ी मूलनायक श्रीचन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा स्थापित है, जो सं०