________________ ( 53) निकाल कर निज राज्यधानी पालीताणा में कायम की, जो अब तक उन्हीं के वंशजों के अधिकार में कायम है। शहर में हिन्दु और मुसलमानों के सिवाय वीशाश्रीमाली जैनों के 400, दशाश्रीमालीजैनों के 100, वीशाओशवालों के 8, सोरठियादशाजैनों के 50 और भावसार जैनों के 8 घर आबाद हैं, जिनकी जनसंख्या 2000 के अन्दाजन है / यहाँ के जैन एक ही तपागच्छ के होने पर भी दो विभाग में विभक्त ( बंटे हुए ) हैं-१ मोटी-टोली और नानी-टोली / दोनों टोली के उपाश्रय जुदे, धर्मक्रिया जुदी, और धर्मोत्सवयोग्य सर सामान भी जुदा है / इनमें पारस्परिक ममत्त्वभाव भी अधिक है और ये एक दूसरे के धार्मिक उत्सवों में भाग नहीं लेते। शहर में तपागच्छ, अंचलगच्छ और खरतरगच्छ; इन तीनों के उपाश्रय बने हुए हैं, परन्तु इस समय सभी तपागच्छ में मिल गये हैं, इससे यहाँ अंचल और खरतरगच्छ का नाम शेष ही रहा समझना चाहिये / शहर में सौधशिखरी और उत्तम नकशी से शोभित आदिनाथ का मन्दिर जो ' मोटा देहरासर' के नाम से प्रसिद्ध है / इसको दीवबंदर निवासी सेठ रूपचंद भीमजीने सं० 1817 में बनवाया है और इसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव की सर्वाङ्ग सुन्दर श्यामवर्ण की तीन फुद् बडी प्रतिमा विराजमान है, जो तपागच्छीय श्रीपूज्य श्रीदयासूरि