________________ धन्यवाद दिया जाता है और सूचित किया जाता है कि इसी प्रकार इतर सद्गृहस्थों को भी अत्युपयोगी साहित्य प्रकाशन का हार्दिक उत्साह दिखाकर निजोपार्जित सल्लक्ष्मी का अलभ्य लाभ प्राप्त करना चाहिये / संसार में साहित्य-प्रचार ही समाज, धर्म तथा आत्मजागृति का मुख्य अंग माना गया है और इसीसे मनुष्य सत्याऽसत्य का निर्णय करने में सफल-मनोरथ होता है / इत्यलं विस्तरेण. ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः ! ! ! यत्पादपबमनिशं स्मरतां नराणां, धर्मे मतिः क्षितितले विपुला च कीर्तिः / गेहे सुमङ्गलमनारतसम्पदाप्ती, राजेन्द्रसूरिरिह शन्तनुतां ससङ्घ // 1 // वीरनिर्वाण 2461 / व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्यायकार्तिकशुक्ला 5 रवि . मुनिश्रीयतीन्द्रविजय / ता० 11-11-34 ) मु० श्रीसिद्धक्षेत्र-पालीताणा /