________________ (105) प्रवेश किये वाद उसके अन्त तक मार्ग में सम भूमितल, खारी काले रंग की मिट्टी और उस पर कहीं कहीं सफेदी (खारी) जमी हुई दिखाई देती है / रण में चारा, वृक्ष, लता आदि कुछ भी नहीं है और न चींटी आदि जन्तुजात है / हुतासनी (होली) के वाद पश्चिम दिशा की हवा चलने पर रण में सर्वत्र समुद्र का पानी भरा जाता है / जिसके कारण खुश्की रास्ते विलकुल बन्दसे हो जाते हैं / लेकिन अत्यावश्यकीय कार्य की उपस्थिति में रात्रिंदिवस घूमनेवाले रणचर मनुष्य को साथ में रखकर लोग बमुस्किल रण में गमनाऽऽगमन (जाना आना) करते हैं / जल से रण भराये वाद समुद्रसा देख पडता है और उसके मार्ग का लांघना मोत की निशानी बन जाता है / कई लोग तो वीचमें ही प्राण छोड देते हैं और कई आयु के प्रबलोदय से रण को पार कर जाते हैं। रण में गरमी अनहद पड़ती है, इससे लोग ग्रीष्मकाल में पीने लायक पानी साथ में रखकर रात्रि को रण का पन्थ पार करते हैं और शीतकाल में दिन को दश बजे तक रणमार्ग को उल्लंघन कर जाते हैं। इन्हीं मुसीबतों के कारण कच्छदेश के तरफ जैनसाधु साध्वियों का विहार कम होता है और कभी कोई तीर्थयात्रा, या देशदर्शन के लिये जाता भी है, तो रणमार्ग में योग्य प्रबन्ध मिलने पर जाता है / रेल्वे से इस तीर्थ की यात्रा करनेवाले भावुकों को जामनगर-रेल्वेस्टेशन पर