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________________ ( 179 ) खरतरवासे पूर्ण प्रकाशे-हाँ पूर्ण प्रकाशे / मंदिर ग्यारा सार, फिर फिर से दर्श दिलावना // 0 // 3 // कंचनगिरि की पूजा प्यारे-हाँ पूजा प्यारे। मवजल से देवे तार, फिर फिर से दर्श दिलावना ॥अ०॥४॥ ___ अगर प्यारे पूजन से दूर रहोगे-हाँ दूर रहोगे। होगा पश्चाताप, फिर फिर से दर्श दिलावना // 0 // 5 // __ तपगच्छराया, राजेन्द्र गवाया-हाँ राजेन्द्र० / यतीन्द्र आनंद पाय, फिर फिर से दर्श दिलावना // 10 // 6 // कलश-हरिगीतसंवत् उगणी नेऊ साले, आये हम सिद्धाचले। अषाढसुदि द्वितीया दिने, भेटे प्रभु चरणों बले // गिरिराज स्तवना ढाल चारों, भाषा सुंदर मैं भणी। राजेन्द्र शुभचर यतीन्द्र मुनिवर, राखजो किंकरगणी // 1 // घेटीमंडन-श्रीशान्तिजिन-स्तवनम् / तर्ज-रामायणी-गझल. दर्श करने का मजा, भावुक जनों ने ले लिया। दर्श करके दुर्गति का, सभी रास्ता खो दिया ॥टेर // दर्श के परताप से, आर्द्रकुमर पाया सही / पवन छोडा देश सारा, संजम साधन कर लिया॥०॥१॥
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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