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________________ ( 203) अष्ट कर्मरिपु नित्य निकंदन, जनता के प्रभु भव दुख भंजन / देखत दिल होता है रंजन // नमो० // 5 // भूवड ग्रामे किया है डेरा, श्वेतवर्ण तनु दीपत गेरा / जगत तिरैया नाम है तेरा ॥नमो० // 6 // सूरिराजेन्द्र की आणा सारी, यतीन्द्रमुनि को है हितकारी / लेना त्रिविध वंदना म्हारी ॥नमो० // 7 // भद्रेश्वरतीर्थमंडन-श्रीमहावीरजिन-चैत्यवन्दनम् / दोहावीराब्द त्रिविंशति समे, स्थापित तीरथ एह / श्याम वरण पारस विभु, हतां गुणमणि गेह // 1 // जगडू उद्धार थयां पछि, स्थाप्या चरम जिनेश / तीर्थ भद्रेश्वर अधिपति, वसति मंडन एष // 2 // ज्ञानवंत अवतंस जिन, परमेश्वर सुखकंद / अलख निरंजन साहिबो, त्रिशला देवी नंद // 3 // प्रतापधूरा संघ सह, आव्या प्रभुने पाय / दुःख दोहग दूरे गयां, आनंद मंगल थाय // 4 //
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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