________________ ( 198 ) बोंधमंडन-श्रीसंभवजिन-स्तवनम् / तर्ज-अर्ध महाड. दूर देश का यात्री हूँ मैं, कहाँ पर प्रभु निवास किया। अधम उद्धारक संभवजिनने, मुझ पापी को दर्श दिया।टेर॥ विकट विहारी जो कोई होगा, कच्छ जातरा जावेगा। भवभव संचित कर्मनिकाचित, क्षण इक में खपावेगा। दूर०१ सावत्थिपुर वासी को वंदे, सेना मात जितारी राया / प्रियालवृक्षे केवल प्रगटा, शिवपुर सुख पाय लिया / दूर०२ संवत उन्निस नेऊ साले, माघकृष्ण तृतीया दिवसे / सुख समाधी से करी जातरा,मुनिमंडल सहु मन हर्षे ॥दूर०३ कच्छ देश के बोध गाँव में, संघ साथ ले कर आये / प्रतापचन्द्र धूराजी साथे, भक्ति करी बहु दिल चाये॥ दूर०४ सूरिविजयराजेन्द्र हमारा, तपगच्छ नायक जान लिया। यतीन्द्रमुनिने जीवन अपना, गुरुचरणों में भेट किया दू०५ भचाऊमंडन-श्रीअजितनाथजिन-स्तवनम् / देशी-आवो बंधु जइये. चालो ए सैयर आजे, अजितप्रभु दरबाजे-अघभांजे, मेरो यह तारणहार है // टेर //