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________________ (147) दिर जो अच्छा रंगा, चंगा और दर्शनीय है / इसमें मूलनायक श्रीवासुपूज्यस्वामी की श्वेतवर्ण 3 फुद् बडी प्राचीन प्रतिमा विराजमान है और दूसरी पाषाणमय 25, धातुमय पंचतीर्थी 9 तथा गट्टाजी 5 एवं कुल 39 जिनप्रतिमा स्थापित हैं / द्वितीय मन्दिर में मूलनायक श्रीशान्तिनाथ की 2 फुट बडी श्वेतवर्ण प्रतिमा और तीसरे मन्दिर में मूलनायक श्रीसुपार्श्वनाथ की श्वेतवर्ण 3 फुट बडी प्रतिमा स्थापित है / प्रथम तपागच्छ का, द्वितीय खरतरगच्छ का और तृतीय अंचलगच्छ का जिनालय है / अंचलगच्छीय जिनालय के प्रवेशद्वार की सामने की भींत पर एक शिलालेख इस प्रकार लगा है 20-" ॐ नमः सिद्ध / श्रीवीरसंवत् 2386 विक्रमसं० 1916 वर्षे, शाके 1782 प्रवर्त्तमाने, ज्येष्ठसुदि 13 शुक्रे, श्रीकच्छदेशे अंजारनगरे, श्रीविधिपक्ष (अंचल) गच्छे पूज्यभट्टारक श्री 108 श्रीरत्नसागरसूरीश्वरजी राज्ये तस्याज्ञाकारी मुनिक्षमालाभजी उपदेशात् श्रीभुजनगर निवासी वडोडागोत्रे से० मांगजी भवानजी नवीनप्रासाद कारापितं, अंजार नगरे अंचलगच्छे संघमुख्य-सा०वालजी शांतिदाससहितेन श्रीसुपार्श्वनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं, तं श्रीजिनभक्तमातंगयक्षशांतादेवी चक्रेश्वरी महाकाली मूर्ति च तस्या स्थापिता।
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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