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________________ ( 192 ) घर घर मंगल कुंभ भरे जब, तोरण हार बंधाई / घर घर थापे पंचरंग सोहे, मोती के चोक पुराई न०७ दश दिन निज कुल तिथि को करते, जिनेन्द्र पूजा रचाई। बारहवें दिन सुत नाम सुहंकर, वर्धमान सुखदाई न०८ रतन जवाहिर माणिक चमके, पालना हेम बनाई / छननन छननन घूघरु बाजे, मोती झालर झलकाई न०९ चालो चालो कहती माता, रेशम डोरी खिंचाई / वीरकुमर को झूले देते, रोम रोम हरखाई न०१० वीरकुमर का पालना सुंदर, जेतपुरे हम गाई। उगणीसौ नेऊ की साले, बारस पौष की आई न० 11 सूरिराजेन्द्र रमत निज रूपे, सारा ने सुखदाई / यतीन्द्रमुनि तुझ सेवा करतां,जगमें फिर नवि आई न०१२ गोंडलमंडन-श्रीचन्द्रप्रभुजिन-स्तवनम् / ___तर्ज-तमे जो जो न वायदा वितावजो रे०, पुर गोंडलशहरे आवजो रे, चन्द्रप्रभुना चरण पखालजो। सांची नित्य नवी भावना भावजो रे, चन्द्रप्रभुना चरण पखालजो // टेर // चन्द्रपुरी है जन्म कल्याणक, महासेन घर नीपजे माणक, राणी लक्षमणा कुंख दिपावजो रे ॥चन्द्र० // 1 //
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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