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________________ ( 193) शिखरबद्ध जिनगृहमां सोहे, ऊपर कलश नक्षी का मोहे / गुणी गिरुवाना गुण नित्य गावजो रे // चन्द्र० // 2 // संसार माया छोडी है सारी, संजम साधन कीनी तैयारी। रूडी रीते कर्म दहावजो रे ॥चन्द्र० // 3 // भव्यात्माओंने उपदेश देता, कर्म खपावी केवल लेता / जन्म मरण दुःख निवारजो रे ॥चन्द्र० // 4 // चन्द्रप्रभु प्यारा नैनों का तारा, तूं तारक मैं सेवक थारा / मेरी भी वीनती स्वीकार जो रे ॥चन्द्र० // 5 // संवत उगणी नेऊना वरसे, पौषशुक्ल श्रीद्वितीया दिवसे / संघ साथे प्रभुने जुहारजो रे ॥चन्द्र० // 6 // रहो रहो राजेन्द्र हमारा, यतीन्द्रमुनि के प्राण आधारा / शाश्वत वंदना मानजो रे ॥चन्द्र // 7 // राजकोटमंडन-श्रीसुपार्श्वजिन-स्तवनम् / ' तर्ज-गझल. प्रभु तुम दर्श करने से, तमन्ना हो गया हूँ मैं / जगत के झूठे फतवे छोड, तमन्ना हो गया हूँ मैं |टेर॥ सुपारस नाम जो तेरा, जिगर में जम गया घेरा / परम उपकारी तूं मेरा, तमन्ना हो गया हूँ मैं // 0 // 1 // 13
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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