________________ ( 67 ) वारिखिल्ल-अइमत्ता-नारद इन चार महर्षियों की श्यामवर्णी कायोत्सर्गस्थ मूर्तियाँ, भूषणकुंड ( बावलकुंड ), राम-भरत-शुकराज-शैलक-थावच्चा; इन पांच मुनिवरों की कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा, हनुमारद्वार, जाली-मयाली उवयाली, इन तीन की कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा, इतने दर्शनीय स्थान आते हैं / रास्ते में हरएक कुंड और परब के पास यात्रियों को विश्राम लेने के लिये विसामे बने हुए हैं और परबों में गरम, ठंडा दोनों तरह के जल हाजिर रक्खे जाते हैं, जिससे यात्रियों को बडी शाता पहुंचती है / रास्ते के चारों हडों के चढाव में हिंगलाज को हडा अति कठिन है। इसका ऊंचा तीखा चढाव होने से यात्री चढ़ते चढते थक जाते हैं / इस हडे को पार किये वाद यात्रियों के मन में सहज विचार हो उठता है कि 'अब तो पार लगे, गिरिराजाधिपति को अभी जाकर भेटते हैं।' इस हडे के विषय में कहावत भी है कि-" हिंगलाजनो हडो, केडे हाथ दइ चढो / फूट्यो पापनो घडो, बांध्यो पुन्यनो पडो॥" जाली-मयालीटेकरी से 25 कदम आगे जाने पर तीर्थाधिराज का मजबूत बाह्य किला आता है, जो चार माइल चोरस विस्तारवाला है और इसमें प्रवेश करने के लिये मुख्य रामपोल दरवाजा तथा दो छोटी वारियाँ