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________________ (56) की बादामीरंग की ढाइ फुट बडी भव्य प्रतिमा विराजमान है, जो 'सांचादेव' के नाम से प्रसिद्ध और सं० 1958 में यहाँ स्थापन हुई है / इसके सिवाय कल्याणभुवन के पीछे दादावाडी के नाम से प्रसिद्ध जगह पर गुंबजदार छत्री में खरतरगच्छीय श्रीजिनदत्तसूरिजी की मूर्ति, तथा जिनकुशलसूरि और जिनदत्तसूरि के चरण और उसके बाह्य ताक में श्रीनेमनाथ आदि 5 जिनप्रतिमा स्थापित हैं। इससे थोडी दूर पूर्व-दक्षिण तरफ जलनलटांकी के पास एक चत्वर के ऊपर पीलवृक्ष के नीचे दो छोटी देवकुलिकाओं में श्रीआदिनाथप्रभु के दो जोड चरण स्थापित हैं, जो प्राचीन हैं और सिद्धाचल की जूनीतलेटी के नाम से प्रसिद्ध हैं। पर्युषण में स्थानीय जैनसंघ चैत्यपरिपाटी करता हुआ यहाँ आकर चैत्यवन्दनादि करके वापिस लौटता है। शहर से उत्तर-पूर्व में धांधरका नदी के दक्षिण तट पर चत्वर बद्ध एक छोटी देहरी में प्राचीन समय के श्रीगोडीपार्श्वनाथ के चरण स्थापित हैं / चैत्र आश्विन के ओलीतप में दशमी के दिन ओलीतप करनेवाले यहाँ दर्शनार्थ जाकर धजा चढ़ाते हैं। देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण-ज्ञानभंडार 1, हेमचंद्राचार्य पुस्तकालय 2, अम्बालाल-ज्ञानभंडार 3, वीरवाई-पुस्तकालय 4, नीतिसूरि-जैनलायब्रेरी 5, तलकचंद माणेकचंद
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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