SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 119 ) है। इसके मुख्य जिनालय में मूलनायक श्रीसहस्रफणापार्श्वनाथ की श्वेतवर्ण भव्यप्रतिमा विराजमान है। इसके प्रवेशद्वार के पास दहिने भाग में अद्भुतबाबा (आदिनाथ) की विशालकाय प्रतिमा और वांये भाग के शिखरबद्ध जिनालय के होल में पांच सुमेरु चोमुख चार चार जिन प्रतिमा सहित स्थापित हैं / ३-इसके पास लगते ही 'सोनीसंगरामवसइ' है, जो विशाल दो वरते मंडप और देवकुलिकाओं से शोभित है। इसमें भी मूलनायक श्रीसहस्रफणा-पार्श्वनाथ की श्वेतवर्ण प्रतिमा स्थापित है। ४-इसके पास ही 'कुमारवसइ' है, इसमें मूलनायक श्रीअभिनन्दननाथ स्वामी की श्यामवर्ण भव्यप्रतिमा स्थापित है। ये चारों सौधशिखरी जिनालय एक ही कोट के कंपाउन्ड में एक के बाद एक स्थित हैं / इनके अलावा 1 चन्द्रप्रभस्वामी का मन्दिर, मानसंगभोजराज (संभवनाथ) का मंदिर 3 वस्तुपालतेजपाल (सुपार्श्वनाथ ) का मंदिर, 4 संप्रतिराजा (नेमिनाथ) का मंदिर, 5 ज्ञानवाव (आदिनाथ) का मन्दिर, 6 धर्मसी हेमचंद (शान्तिनाथ) का मन्दिर, 7 मलवाला ( शीतलनाथ ) का मन्दिर, 8 राजुलगुफा और 9 चोमुख ( नेमिनाथ, महावीर, पार्श्वनाथ शान्तिनाथ ) जिनालय एवं नौ जिनमंदिर कोट के बाहर हैं। परन्तु कोटगत 4, और बाहर के 9, एवं तेरह जिनालय
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy