________________ ( 172) प्राप्त करनेवाले विड्वलने सं०१८६१ फाल्गुनसुदि 12 शनिवार के दिन पुष्य नक्षत्र में जडेश्वर का देवल बनाया, गांगाधर से प्रेरित होकर मैंने महादेव की पूजा की। यहाँ यह देवल प्रथम ही मैंने बनाया, इसलिये जडेश्वर मेरे ऊपर प्रसन्न हो / जय का मूल और जगत का जन्मादि कारण होने से विद्वान् इसको जटेश्वर कहते हैं। सं० 1869 शाके 1734 फाल्गुनसुदि 12 शनिवार के दिन पुष्पनक्षत्र, आयुष्ययोग, बालवकरण और सूर्योदय से इष्टघटी 15 / 21 के समय में देवल की प्रतिष्ठा हुई, जो इष्ट दायक हो। कटारिया महावीरप्रतिमा 18 सं० 1686 वैशाखसुदि३ के दिन श्रीमहावीर का बिंब कराया और उसकी प्रतिष्ठा कटारियागांव में तपागच्छीय आचार्य श्री विजयसिंहमूरिजीने की। ___इस प्रतिमा के पिछले भाग में भी तीन पंक्ति का लेख है जिसमें प्रतिष्ठा करनेवाले का विशेष परिचय और उस समय के ठाकुरवंश का हाल होगा। लेकिन प्रतिमा भीत के पास मजबूत चेपी हुई होने से वह वांचा नहीं जाता, शिर्फ अगले भाग में ऊपर मुताबिक लेख है। * बोध (बिंध ) संभवनाथप्रतिमागस्त १९-सं० 1682 वैशाखसुदि 3 के दिन बिंधनगर