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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अथैतद्बाध्यते;- एयत्तणिच्छयगओ समओ सव्वत्थ सुंदरो लोए। बंधकहा एयत्ते तेण विसंवादिणी होई ॥३॥
एकत्वनिश्चयगतः समयः सर्वत्र सुंदरो लोके । '
बंधकथैकत्वे तेन विसंवादिनी भवति ॥ ३॥ समयशब्देनात्र सामान्येन सर्व एवार्थोऽभिधीयते । समयत एकीभावेन स्वगुणपर्यायान् गच्छतीति निरुक्तस्ततः सर्वत्रापि धर्माधर्माकाशकालपुद्गलजीवद्रव्यात्मनि लोके ये यावंतः जीवस्तदा तं जीवं परसमयं जानीहीति स्वसमयपरसमयलक्षणं ज्ञातव्यं ॥ २॥ अथ स्वगुणैकत्वनिश्चयगतशुद्धात्मैवोपादेयः कर्मबंधेन सहैकत्वगतो हेय इति, अथवा स्वसमय एव शुद्धात्मनः खरूपं न पुनः परसमय इत्यभिप्रायं मनसि धृत्वा, अथवास्य सूत्रस्यानंतरं सूत्रमिदमुचितं भवतीति निश्चित्य विवक्षितसूत्रं प्रतिपादयति;-इति पातनिकालक्षणं सर्वत्र ज्ञातव्यं । एयत्तणिच्छयगदो स्वकीयशुद्धगुणपर्यायपरिणतः, अभेदरत्नत्रयपरिणतो वा एकत्वनिश्चयगतः समओ समयशब्देनात्मा, कस्माद्धेतोः । सम्यगयते गच्छति परिणमति । कान् । स्वकीयगुणपर्यायानिति व्युत्पत्तेः । सव्वत्थसुंदरो सर्वत्र समीचीनः । क । लोगे लोके अथवा सर्वत्रैकेंद्रियाद्यवस्थासु शुद्धनिश्चयनयेन सुंदर उपादेय इति । बंधकहा कर्मबंधजनितगुणस्थारूप लीन हो प्रवर्तता है तब पुद्गलकर्मके कार्मणस्कंधरूप प्रदेशोंमें ठहरनेसे परद्रव्यको अपनेसे एकपनाकर एक कालमें जानता तथा रागादिरूप परिणमता हुआ परसमय ऐसा प्रतीतिरूप किया जाता है । इसतरह इस जीवनामा पदार्थके स्वसमय परसमय ऐसे दो भेदपना प्रगट होता है । भावार्थ-जीवनामा वस्तुको पदार्थ कहा है । वह ऐसे है कि पद तो 'जीव' ऐसे अक्षरसमूहरूप है और इस पदसे जो द्रव्यपर्यायरूप अनेकांतखरूपपना निश्चित किया जाय वह पदार्थ है। ऐसा पदार्थ उत्पादव्ययध्रौव्यमयी सत्तास्वरूप है । दर्शनज्ञानमयी चेतनास्वरूप है, अनंतधर्मस्वरूप द्रव्य है और द्रव्य है वह वस्तु है । गुणपर्यायवाला है, स्वपरप्रकाशकज्ञान अनेकाकाररूप एक है, आकाशादिकसे भिन्न असाधारण चैतन्यगुणस्वरूप है और अन्यद्रव्योंसे एक क्षेत्रावगाहरूप तिष्ठता है तौभी अपने स्वरूपको नहीं छोड़ता । ऐसा जीवनामा पदार्थ समय है । जब यह अपने स्वभावमें स्थित होता है तब तो स्वसमय है और परस्वभाव रागद्वेषमोहवरूप होके तिष्ठता है तब परसमय है । ऐसे इस जीवके दोभेदपना आता है ॥ २ ॥ आगे आचार्य कहते हैं कि समयका द्विविधपना होना ठीक नहीं है क्योंकि यह बाधा सहित है इसलिये बाधा जाता है;-[एकत्वनिश्चयगतः] एकत्वनिश्चयमें प्राप्त जो [समयः] समय है वह [सर्वत्र लोके] सब लोकमें [सुंदरः] सुंदर है [तेन] इसलिये [एकत्वे] एकत्वमें [बंधकथा] दूसरेके साथ बंधकी कथा [विसंवादिनी] निंदा कराने