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पत्र-पुष्प
जिन सन्तत सदशान-सुधा-सुरसरी बहाई। लेकर तर्क-त्रिशूल वाद-मर्याद मिटाई ॥ शम-दम-व्याल कराल भाल श-कला छिटकाई।
वर-वैराग्य-विभूति-भूति-भूषण सुखदाई ॥ जो सदन सुखघन शान्तिधन बोध-व्योम अविकार हैं। उन शंकर-मौलि-मणीन्द्रपर ये पत्र-पुष्प निःसार हैं।
अनुवादक
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