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विवेकचूडामणि
: उन सूर्य और खद्योत ( जुगनू ), राजा और सेवक, समुद्र और प तथा सुमेरु और परमाणुके समान परस्पर विरुद्ध धर्मवालोंका एकत्व लक्ष्यार्थमें ही कहा गया है, वाच्यार्थमें नहीं। तयोर्विरोधोऽयमुपाधिकल्पितो
न वास्तवः कश्चिदुपाधिरेषः । ईशस्य माया महदादिकारणं
जीवस्य कार्य शृणु पञ्चकोशम् ॥२४५॥ उन दोनोंका यह विरोध उपाधिके कारण है और यह उपाधि कुछ वास्तविक नहीं है। ईश्वरकी उपाधि महत्तत्त्वादिकी कारणरूपा माया है तथा जीवकी उपाधि कार्यरूप पञ्चकोश हैं । एतावुपाधी APपरजीवयोस्तयोः . com
सम्यनिरासे न परो न जीवः । राज्यं नरेन्द्रस्य भटस्य खेटक- ।
स्तयोरपोहे न भटो न राजा ॥२४६॥ ये परमात्मा और जीवकी उपाधियाँ हैं। इनका भली प्रकार बाध हो जानेपर न परमात्मा ही रहता है और न जीवात्मा ही। जिस प्रकार राज्य राजाकी उपाधि है तथा ढाल सैनिककी; इन दोनों उपाधियोंके न रहनेपर न कोई राजा है और न योद्धा । अथात आदेश. इति श्रुतिः स्वयं
निषेधति ब्रमणि कल्पितं द्वयम् । श्रुतिप्रमाणानुगृहीतयुक्त्या ..:: : तयोनिरासः करणीय एव ॥२४७॥
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