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मैं न यह हूँ, न वह हूँ, बल्कि इन दोनों ( स्थूल-सूक्ष्म जगत् ) का प्रकाशक, बाह्याभ्यन्तरशून्य, पूर्ण, अद्वितीय और शुद्ध परब्रह्म ही हूँ।
निरुपममनादितत्वं त्वमहमिदमद इतिकल्पनादूरम् । निल्यानन्दैकरसं सत्यं ब्रह्माद्वितीयमेवाहम् ॥४९४॥
जो उपमारहित अनादितत्त्व 'तू, मैं, यह, वह' आदिकी कल्पनासे अत्यन्त दूर है वह नित्यानन्दैकरसस्वरूप, सत्य और अद्वितीय ब्रह्म ही मैं हूँ। नारायणोऽहं नरकान्तकोऽहं
पुरान्तकोऽहं पुरुषोऽहमीशः । अखण्डबोधोऽहमशेषसाक्षीndi com
निरीश्वरोऽहं निरहं च निर्ममः ॥४९५॥ मैं नारायण हूँ, नरकासुरका विघातक हूँ, त्रिपुरदैत्यका नाश करनेवाला हूँ, परम पुरुष हूँ और ईश्वर हूँ। मैं अखण्डबोधस्वरूप हूँ, सबका साक्षी हूँ, स्वतन्त्र हूँ तथा अहंता और ममतासे रहित हूँ [ यह सभी वर्णन शुद्ध आत्मतत्त्वका परब्रह्म परमात्मासे अभेद प्रतिपादन करनेके लिये है। ] ___ सर्वेषु भूतेष्वहमेव संस्थितो ।
ज्ञानात्मनान्तर्बहिराश्रयः सन् । । भोक्ता च भोग्यं स्वयमेव सर्व
____ यद्यत्पृथग्दृष्टमिदन्तया पुरा ॥४९६॥ ज्ञानस्वरूपसे सबका आश्रय होकर समस्त प्राणियोंके बाहर और भीतर मैं ही स्थित हूँ तया- पहले जो-जो पदार्थ "इदवृत्तिद्वारा
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