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बोधोपलब्धि संवशिरोमणि, नित्य-अद्वितीय-आनन्दरसस्वरूप, अति महान् और नित्य-अपार-दयासागर महात्मा गुरुदेवको बारंबार नमस्कार है।
धन्योऽहं कृतकृत्योऽहं विमुक्तोऽहं भवग्रहात् । नित्यानन्दवरूपोऽहं पूर्णोऽहं तदनुग्रहात् ॥४८९॥
उन श्रीगुरुदेवकी कृपासे आज मैं धन्य हूँ, कृतकृत्य हूँ, संसारबन्धनसे रहित हूँ तथा नित्यानन्दस्वरूप और सर्वत्र परिपूर्ण हूँ।
असङ्गोऽहमनङ्गोऽहमलिङ्गोऽहमभङ्गुरः । प्रशान्तोऽहमनन्तोऽहमतान्तोऽहं चिरन्तनः ॥४९०॥
में असंग हूँ, अशरीर हूँ, अलिङ्ग हूँ और अक्षय हूँ तथा अत्यन्त शान्त, अनन्त, अतान्त ( निरीह ) और पुरातन हूँ।
अकर्ताहमभोक्ताहमविकारोऽहमक्रियः । शुद्धबोधस्वरूपोऽहं केवलोऽहं सदाशिवः ॥४९१॥
3 अकर्ता हूँ, अभोक्ता हूँ, अविकारी हूँ, अक्रिय हूँ, शुद्धकोषस्वरूप हूँ, एक हूँ और नित्य कल्याणस्वरूप हूँ।
द्रष्टुः श्रोतुर्वक्तुः कर्तुर्भोक्तुर्विभिन्न एवाहम् । नित्यनिरन्तरनिष्क्रियनिःसीमासङ्गपूर्णबोधात्मा॥४९२॥
द्रष्टा, श्रोता, वक्ता, कर्ता, भोक्ता-मैं इन सभीसे भिन्न हूँ, मैं ते नित्य, निरन्तर, निष्क्रिय, निःसीम, असंग और पूर्णबोध.
नाहमिदं नाहमदोऽप्युभयोरवभासकं परं शुद्धम् । चावाभ्यन्तरशून्यं पूर्ण ब्रह्माद्वितीयमेवाहम् ॥४९३।।
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