Book Title: Vivek Chudamani
Author(s): Shankaracharya, Madhavanand Swami
Publisher: Advaita Ashram

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Page 440
________________ उपदेशका उपसंहार जिस प्रकार पत्थर, वृक्ष, तृण, अन्न, भूसा और वस्त्र आदि जलनेपर मिट्टी ही हो जाते हैं उसी प्रकार देह, इन्द्रिय, प्राण और मन आदि सम्पूर्ण दृश्य पदार्थ ज्ञानाग्निसे दग्ध हो जानेपर परमात्मस्वरूप ही हो जाते हैं । १७९ विलक्षणं यथा ध्वान्तं लीयते भानुतेजसि । तथैव सकलं दृश्यं ब्रह्मणि प्रविलीयते ॥ ५६५॥ जैसे सूर्यका प्रकाश होनेपर उससे विपरीत स्वभाववाला अन्धकार उसीमें लीन हो जाता है वैसे ही सम्पूर्ण दृश्य-प्रपञ्च ज्ञानोदय होनेपर ब्रह्ममें ही लीन हो जाता है । घटे नष्टे यथा व्योम व्योमैव भवति स्फुटम् | तथैवोपाधिविलये ब्रह्मैव ब्रह्मवित्स्वयम् ||५६६॥ घड़ेके नष्ट होनेपर जैसे घटाकाश महाकाश ही हो जाता है वैसे ही उपाधिका लय होनेपर ब्रह्मवेत्ता स्वयं ब्रह्म ही हो जाता है । क्षीरं क्षीरे यथा लिप्तं तैलं तैले जलं जले । संयुक्तमेकतां याति तथात्मन्यात्मविन्मुनिः ॥५६७॥ जैसे दूधमें मिलकर दूध, तैलमें मिलकर तैल और जलमें मिलकर जल एक ही हो जाते हैं वैसे ही आत्मज्ञानी मुनि आत्मामें लीन होनेपर आत्मखरूप ही हो जाता है । एवं विदेहकैवल्यं सन्मात्रत्वमखण्डितम् । ब्रह्मभावं प्रपद्यैष यतिर्नावर्तते पुनः ॥ ५६८ ॥ अखण्ड सत्तामात्र से स्थित होना ही विदेह - कैवल्य है । इस प्रकार ब्रह्म-भावको प्राप्त होकर यह यति फिर संसार-चक्रमें नहीं पड़ता । http://www.ApniHindi.com

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