Book Title: Vivek Chudamani
Author(s): Shankaracharya, Madhavanand Swami
Publisher: Advaita Ashram

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Page 425
________________ १६४ विवेक-चूडामणि अव्यक्तादिस्थूलपर्यन्तमेत द्विश्वं यत्राभासमात्र प्रतीतम् । व्योमप्रख्यं सूक्ष्ममाद्यन्तहीनं ब्रह्माद्वैतं यत्तदेवाहममि ॥५१३॥ अव्यक्तसे लेकर स्थूलभूतपर्यन्त यह समस्त विश्व जिसमें आभासमात्र प्रतीत होता है तथा जो आकाशके समान सूक्ष्म और आदि-अन्तसे रहित अद्वैत ब्रह्म है वही मैं हूँ। सर्वाधारं सर्ववस्तुप्रकाशं सर्वाकारं सर्वगं सर्वशून्यम् । नित्यं शुद्धं निश्चलं निर्विकल्पं ब्रह्माद्वैतं यत्तदेवाहमस्मि ॥५१४॥ जो सबका आधार, सब वस्तुओंका प्रकाशक, सर्वरूप, सर्वव्यापी, सबसे रहित, नित्य, शुद्र, निश्चल और विकल्परहित अद्वैत ब्रह्म है वही मैं हूँ। यत्प्रत्यस्ताशेषमायाविशेष प्रत्यग्रपं प्रत्ययागम्यमानम् । सत्यज्ञानानन्तमानन्दरूपं ब्रह्माद्वैतं यत्तदेवाहमसि ॥५१५॥ जो समस्त मायिक भेदोंसे रहित, अन्तरात्मारूप और साक्षात् प्रतीतिका अविषय तथा अनन्त सच्चिदानन्दस्वरूप अद्वैत ब्रह्म है, वही मैं हूँ। http://www.Apnihindi.com

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