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विवेक-चूडामणि
जिस प्रकार खप्नमें निद्रा-दोषसे कल्पित देश, काल, विषय और ज्ञाता आदि सभी मिथ्या होते हैं, उसी प्रकार जाग्दवस्थामें भी यह जगद, अपने अज्ञानका कार्य होनेके कारण, मिथ्या ही है । इस प्रकार क्योंकि ये शरीर, इन्द्रियाँ, प्राण और अहंकार आदि सभी असत्य हैं, अतः तुम वही परब्रह्म हो जो शान्त, निर्मल और अद्वितीय है। जातिनीतिकुलगोत्रदुरगं
नामरूपगुणदोषवर्जितम् । देशकालविषयातिवर्ति यद्
ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥२५५॥ • जो जाति, नीति, कुल और गोत्रसे परे है; नाम, रूप, गुण और दोषसे रहित है तथा देश, काल और वस्तुसे भी पृथक् है तुम वही ब्रह्म हो-ऐसी अपने अन्तःकरणमें भावना करो। यत्परं सकलवागगोचरं
गोचरं विमलबोधचक्षुषः । शुद्धचिद्धनमनादिवस्तु यद्
ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥२५६॥ जो प्रकृतिसे परे और वाणीका अविषय है, निर्मल ज्ञानचक्षुओंसे जाना जा सकता है तथा शुद्ध चिद्धन अनादि वस्तु है, तुम वही ब्रह्म हो—ऐसी अपने अन्तःकरणमें भावना करो । पभिरूमिमिरयोगि योगिहृद्-..
भावितं न करणैर्विभावितम् । . बुद्धथवेद्यमनवद्यभूति यद्
ब्रह्म तत्त्वमसि भावयात्मनि ॥२५७॥
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