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आत्मज्ञानका फल
आत्मज्ञानका फल संसिद्धस्य फलं त्वेतज्जीवन्मुक्तस्य योगिनः ।
बहिरन्तः सदानन्दरसास्वादनमात्मनि ॥४१९॥ - आत्मज्ञानमें सम्यक् सिद्धि प्राप्त किये हुए जीवन्मुक्त योगीको यही फल मिलता है कि अपने आत्माके नित्यानन्दरसका. बाहरभीतर निरन्तर आखादन किया करे।
वैराग्यस्य फलं बोधो बोधस्योपरतिः फलम् । खानन्दानुभवाच्छान्तिरेषेवोपरतेः फलम् ॥४२॥
वैराग्यका फल बोध है और बोधका फल उपरति (विषयोंसे उदासीनता ) है तथा उपरतिका फल यही है कि आत्मानन्दके अनुभवसे चित्त शान्त हो जाय। indi.com
यद्युत्तरोत्तराभावः पूर्वपूर्व तु निष्फलम् । निवृत्तिः परमा तृप्तिरानन्दोऽनुपमः खतः ॥४२१॥
यदि पिछली-पिछली वस्तुओंकी प्राप्ति न हो तो पहली बातें निष्फल हैं, [ अर्थात् आत्मशान्तिके बिना उपरति, उपरतिके बिना बोध और बोधके बिना वैराग्य निष्फल हैं ] विषयोंसे निवृत्त हो जाना ही परम तृप्ति है और वही साक्षात् अनुपम आनन्द है।
दृष्टदुःखेष्वनुद्वेगो विद्यायाः प्रस्तुतं फलम् । यत्कृतं भ्रान्तिवेलायां नाना कर्म जुगुप्सितम् । पश्चाभरो विवेकेन तत्कथं कर्तुमर्हति ॥४२२॥
प्रारब्धवश प्राप्त हुए दुःखोंसे विचलित न होना ही आत्मज्ञानका सबसे पहला फल है । भ्रान्तिके समय पुरुषने जो नाना
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