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विवेक-चूडामणि
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ब्रह्मानन्दरसाखादासक्तचित्ततया
यतेः ।
अन्तर्बहिरविज्ञानं
जीवन्मुक्तस्य लक्षणम् ॥४३६॥
ब्रह्मानन्दरसाखादमें चित्तकी आसक्ति रहनेके कारण बाह्य और आन्तरिक वस्तुओं का कोई ज्ञान न होना जीवन्मुक्त यतिका लक्षण है। देहेन्द्रियादौ कर्तव्ये ममाभाववर्जितः । औदासीन्येन यस्तिष्ठेत्स जीवन्मुक्तलक्षणः || ४३७॥
देह तथा इन्द्रिय आदिमें और कर्तव्यमें जो ममता और अहंकार से रहित होकर उदासीनतापूर्वक रहता है वह पुरुष जीवन्मुक्तके लक्षणसे युक्त है ।
विज्ञात आत्मनो यस्य ब्रह्मभावः श्रुतेर्बलात् । जीवन्मुक्तलक्षणः || ४३८ ॥
भवबन्धविनिर्मुक्तः
स
जिसने श्रुति-प्रमाणसे अपने आत्माका ब्रह्मत्व जान लिया है और जो संसार-बन्धनसे रहित है वह पुरुष जीवन्मुक्तके लक्षणोंसे सम्पन्न है ।
इभावस्तदन्यके |
देहेन्द्रियेष्वहंभाव
यस्य नो भवतः कापि स जीवन्मुक्त इष्यते ||४३९॥
जिसका देह और इन्द्रिय आदिमें अहंभाव तथा अन्य वस्तुओंमें. इदं (यह ) भाव कभी नहीं होता वह पुरुष जीवन्मुक्त माना जाता है। न प्रत्यग्ब्रह्मणोर्भेदं कदापि ब्रह्मसर्गयोः । प्रज्ञया यो विजानाति स जीवन्मुक्त इष्यते ||४४०॥ जो अपनी तत्त्वावगाहिनी बुद्धिसे आत्मा और ब्रह्म तथा ब्रह्म और संसारमें कोई भेद नहीं देखता वह पुरुष जीवन्मुक्त माना जाता है ।
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