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विवेक-चूडामणि
नानात्व-निषेध परिपूर्णमनाद्यन्तमप्रमेयमविक्रियम् । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन ॥४६५॥
[श्रुति कहती है-] वास्तवमें सर्वत्र परिपूर्ण, अनादि, अनन्त, अप्रमेय और अविकारी एक अद्वितीय ब्रह्म ही है। उसमें और कोई नाना पदार्थ नहीं है।
सधनं चिद्घनं नित्यमानन्दघनमक्रियम् ।
एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन ॥४६६॥ . जो घनीभूत सत्, चित् और आनन्द है; ऐसा एक नित्य, अक्रिय और अद्वितीय ब्रह्म ही सत्य वस्तु है, उसमें कोई नाना पदार्थ नहीं है। . Apn1Hindi.com
प्रत्यगेकरसं पूर्णमनन्तं सर्वतोमुखम् । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन ॥४६७॥
जो अन्तरात्मा, एकरस, परिपूर्ण, अनन्त और सर्वव्यापक है ऐसा एक अद्वितीय ब्रह्म ही है। उसमें नाना पदार्थ कोई नहीं है । अहेयमनुपादेयमनाघेयमनाश्रयम्
। । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किश्चन ॥४६८॥
जो न त्याज्य है, न ग्राह्य है और न किसीमें स्थित होने योग्य है तथा जिसका कोई अन्य आधार भी नहीं है, ऐसा एक अद्वितीय ब्रह्म ही सत्य है, उसमें नाना पदार्थ कोई नहीं है ।
निर्गुणं निष्कलं सूक्ष्म निर्विकल्पं निरञ्जनम् । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन ॥४६९।।
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