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________________ १५० १५० विवेक-चूडामणि नानात्व-निषेध परिपूर्णमनाद्यन्तमप्रमेयमविक्रियम् । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन ॥४६५॥ [श्रुति कहती है-] वास्तवमें सर्वत्र परिपूर्ण, अनादि, अनन्त, अप्रमेय और अविकारी एक अद्वितीय ब्रह्म ही है। उसमें और कोई नाना पदार्थ नहीं है। सधनं चिद्घनं नित्यमानन्दघनमक्रियम् । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन ॥४६६॥ . जो घनीभूत सत्, चित् और आनन्द है; ऐसा एक नित्य, अक्रिय और अद्वितीय ब्रह्म ही सत्य वस्तु है, उसमें कोई नाना पदार्थ नहीं है। . Apn1Hindi.com प्रत्यगेकरसं पूर्णमनन्तं सर्वतोमुखम् । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन ॥४६७॥ जो अन्तरात्मा, एकरस, परिपूर्ण, अनन्त और सर्वव्यापक है ऐसा एक अद्वितीय ब्रह्म ही है। उसमें नाना पदार्थ कोई नहीं है । अहेयमनुपादेयमनाघेयमनाश्रयम् । । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किश्चन ॥४६८॥ जो न त्याज्य है, न ग्राह्य है और न किसीमें स्थित होने योग्य है तथा जिसका कोई अन्य आधार भी नहीं है, ऐसा एक अद्वितीय ब्रह्म ही सत्य है, उसमें नाना पदार्थ कोई नहीं है । निर्गुणं निष्कलं सूक्ष्म निर्विकल्पं निरञ्जनम् । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन ॥४६९।। http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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