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________________ आत्मानुभवका उपदेश जो गुण और कलासे रहित है, सूक्ष्म, निर्विकल्प और निर्मल है, ऐसा एक अद्वितीय ब्रह्म ही सत्य है; उसमें नाना पदार्थ कुछ भी नहीं है। अनिरूप्यस्वरूपं यन्मनोवाचामगोचरम् । एकमेवाद्वयं ब्रह्म नेह नानास्ति किञ्चन ॥४७०॥ जिसका रूप वर्णन नहीं किया जा सकता तथा जो मन और वाणीका भी विषय नहीं है, ऐसा एक अद्वितीय ब्रह्म ही है; उसमें नाना वस्तु कोई भी नहीं है। सत्समृद्धं स्वतःसिद्धं शुद्धं बुद्धमनीदृशम् । एकमेषाद्वयं ब्रम नेह नानास्ति किञ्चन ॥४७१॥ जो सत्य, वैभवपूर्ण, स्वतःसिद्ध, शुद्ध, बोधस्वरूप और उपमारहित है ऐसा एक अद्वितीय ब्रह्म ही सत्य है; उसमें नाना पदार्थ कुछ भी नहीं है। आत्मानुभवका उपदेश निरस्तरागा निरपास्तभोगाः शान्ताः सुदान्ता यतयो महान्तः । विज्ञाय तत्त्वं परमेतदन्ते प्राप्ताः परां निवृतिमात्मयोगात् ॥४७२॥ जिनका किसी भी वस्तुमें राग नहीं है और भोगका भी सर्वथा अन्त हो गया है तथा जिनका चित्त शान्त एवं इन्द्रियों संयत हैं वे महात्मा संन्यासीजन ही इस परम तत्त्वको जानकर अन्तमें इस अध्यात्मयोगके द्वारा परम शान्तिको प्राप्त हुए हैं। http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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