________________
१३९
जीवन्मुक्तके लक्षण जीवन्मुक्तके लक्षण ब्रह्माकारतया सदा स्थिततया निर्मुक्तबाद्यार्थधीरन्यावेदितभोग्यभोगकलनो निद्रालुवद्वालवत् । स्वमालोकितलोकवजगदिदं पश्यन्क्वचिल्लब्धधीरास्ते कश्चिदनन्तपुण्यफलभुग्धन्यः समान्यो भुवि ।४२६॥
निरन्तर ब्रह्माकारवृत्तिसे स्थित रहनेके कारण जिसकी बुद्धि बाह्य विषयोंमेंसे निकल गयी है और जो निद्रालु अथवा बालकके समान दूसरोंके निवेदन किये हुए ही भोग्य पदार्थोंका सेवन करता है तथा कभी विषयोंमें बुद्धि जानेपर जो इस संसारको खमप्रपञ्चके समान देखता है, वह अनन्त पुण्योंके फलका भोगनेवाला कोई ज्ञानी महापुरुष इस पृथ्वीतलमें धन्य है और सबका माननीय है।
स्थितप्रज्ञो यतिरयं यः सदानन्दमश्नुते । ब्रह्मण्येव विलीनात्मा निर्विकारो विनिष्क्रियः ॥४२७॥
जो यति परब्रह्ममें चित्तको लीनकर विकार और क्रियाका त्याग करके सदा आनन्दस्वरूप ब्रह्ममें मग्न रहता है वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है।
ब्रह्मात्मनोः शोधितयोरेकभावावगाहिनी । निर्विकल्पा च चिन्मात्रा वृत्तिः प्रज्ञेति कथ्यते । सुस्थिता सा भवेद्यस्य जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥४२८॥
['तत्त्वमसि' आदि महावाक्योंसे ] शोधित ब्रह्म और आत्माकी एकताको ग्रहण करनेवाली विकल्परहित चिन्मात्रवृत्तिको प्रज्ञा
http://www.Apnihindi.com