Book Title: Vivek Chudamani
Author(s): Shankaracharya, Madhavanand Swami
Publisher: Advaita Ashram

Previous | Next

Page 396
________________ २३५ श्यकी उपक्षा ___ अपने स्वरूपमें चित्तको स्थिर करके अखण्ड ऐश्वर्यसम्पन आत्माका साक्षात्कार करो, संसार-गन्धसे युक्त बन्धनको काट डालो और यत्नपूर्वक अपने मनुष्य-जन्मको सफल करो। सर्वोपाधिविनिर्मुक्तं सच्चिदानन्दमद्वयम् । भावयात्मानमात्मस्थं न भूयः कल्पसेऽध्वने ॥४१३॥ समस्त उपाधियोंसे रहित अद्वितीय सच्चिदानन्दस्वरूप अपने अन्तःकरणमें स्थित आत्माका चिन्तन करते रहो; इससे तुम फिर संसार-चक्रमें नहीं पड़ोगे । - दृश्यकी उपेक्षा छायेव पुंसः परिदृश्यमान___www. मामासरूपेण n फलानुभूत्या । शरीरमाराच्छववनिरस्तं पुनर्ने सन्धत्त इदं महात्मा ॥४१४॥ मनुष्यकी छायाके समान केवल आभासरूपसे दिखलायी देनेवाले, इस शरीरका, इसके फलका विचार करके, शक्के समान एक बार बाध कर देनेपर महात्मागण इसे फिर स्वीकार नहीं करते। सततविमलबोधानन्दरूपं समेत्य त्यज जडमलरूपोपाधिमेतं सुदूरे । अथ पुनरपि नैष सर्यतां वान्तवस्तु सरणविषयभूतं कल्पते कुत्सनाय॥४१५॥ अपने नित्य और निर्मल चिदानन्दमय स्वरूपको प्राप्त करके इस मलरूप जड उपाधिको दूरहीसे सर्वथा त्याग दो और फिर http://www.Apnihindi.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445