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क्रिया, चिन्ता और वासनाका त्याग है। इस ब्रह्ममय वासनाके दृढ़ हो जानेपर इन तीनोंका लय हो जाता है।
क्रियानाशे भवेचिन्तानाशोऽसाद्वासनाक्षयः । वासनाप्रक्षयो मोक्षः सा जीवन्मुक्तिरिष्यते ॥३१८॥
क्रियाके नष्ट हो जानेसे चिन्ताका नाश होता है और चिन्ताके नाशसे वासनाओंका क्षय होता है; इस वासनाक्षयका नाम ही मोक्ष है और यही जीवन्मुक्ति कहलाती है। सद्वासनास्फूर्तिविजृम्भणे सति
ह्यसौ विलीना त्वहमादिवासना। अतिप्रकृष्टाप्यरुणप्रभायां ___www. विलीयते साधु यथा तमिस्रा ॥३१९॥
सूर्यकी प्रभाके उदय होते ही जैसे अत्यन्त घोर अँधेरी रातका भी सर्वथा नाश हो जाता है उसी प्रकार ब्रह्म-वासनाकी स्फूर्तिका विस्तार होनेपर यह अहंकारादिकी वासनाएँ लीन हो जाती हैं। तमस्तमाकार्यमनर्थजालं
न दृश्यते सत्युदिते दिनेशे । . तथाद्वयानन्दरसानुभूती
नैवास्ति बन्धो न च दुःखगन्धः ॥३२०॥ सूर्यके उदय होनेपर जैसे अन्धकार और उसमें होनेवाले [ चोरी आदि ] अनर्थसमूह कहीं दिखलायी नहीं देते, वैसे ही इस अद्वितीय आत्मानन्दके रसका अनुभव होनेपर न तो संसारबन्धन रहता है और न दुःखका ही गन्ध रहता है।
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