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समाधि-निरूपण एकान्तस्थितिरिन्द्रियोपरमणे हेतुर्दमश्चेतसः संरोधे करणं शमेन विलयं यायादहवासना । तेनानन्दरसानुभूतिरचला ब्राह्मी सदा योगिनस्तसाचित्तनिरोध एव सततं कार्यः प्रयत्नान्मुनेः ॥३६९॥
एकान्तमें रहना इन्द्रिय-दमनका कारण है, इन्द्रिय-दमन चित्तके निरोधका कारण है और चित्त-निरोधसे वासनाका नाश होता है तथा वासनाके नष्ट हो जानेसे योगीको ब्रह्मानन्दरसका अविचल अनुभव होता है; इसलिये मुनिको सदा प्रयत्नपूर्वक चित्तका निरोध ही करना चाहिये । वाचं नियच्छात्मनि तं नियच्छ
बुद्धौ धियं यच्छ च बुद्धिसाक्षिणि । तं चापि पूर्णात्मनि निर्विकल्पे
विलाप्य शान्तिं परमां मजस्व ॥३७०॥ ___ वाणीको मनमें लय करो, मनको बुद्धिमें और बुद्धिको बुद्धिके साक्षी आत्मामें, तथा बुद्धि-साक्षी ( कूटस्थ ) को निर्विकल्प पूर्णब्रह्ममें लय करके परमशान्तिका अनुभव करो।।
देहप्राणेन्द्रियमनोबुद्धयादिभिरुपाधिभिः । यैवृत्तेः समायोगस्तत्तद्भावोऽस्य योगिनः॥३७१॥
देह, प्राण, इन्द्रिय, मन और बुद्धि इन उपाधियोंमेंसे जिसजिसके साथ योगीकी चित्त-वृत्तिका संयोग होता है उसी-उसी मोक्की. उसको प्राप्ति होती है। , ,,,
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