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प्रमाद - निन्दा
जिस प्रकार कुलटा स्त्री अपने प्रेमी जार - पुरुषको उसकी बुद्धि बिगाड़कर पागल बना देती है उसी प्रकार विद्वान् पुरुषको भी विषयोंमें प्रवृत्त होता देखकर आत्मविस्मृति बुद्धिदोषोंसे क्षिप्त कर देती है ।
यथापकृष्टं शैवालं क्षणमात्रं न तिष्ठति । आवृणोति तथा माया प्राज्ञं वापि पराङ्मुखम् || ३२५॥
जिस प्रकार शैवालको जलपरसे एक बार हटा देनेपर वह क्षणभर भी अलग नहीं रहता, [ तुरंत ही फिर उसको ढँक लेता है ] उसी प्रकार आत्मविचारहीन विद्वान्को भी माया फिर घेर लेती है 1
लक्ष्यच्युतं
amihindi.com सद्यदि चित्तमीष
द्बहिर्मुखं सन्निपतेत्ततस्ततः ।
प्रमादतः प्रच्युतकेलिकन्दुकः
सोपानपङ्क्तौ पतितो यथा तथा ॥ ३२६ ॥
जैसे असावधानतावश ( हाथसे छूटकर ) सीढ़ियोंपर गिरी हुई खेलकी गेंद एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ीपर गिरती हुई नीचे चली जाती है वैसे ही यदि चित्त अपने लक्ष्य ( ब्रह्म) से हटकर थोड़ा-सा भी बहिर्मुख हो जाता है तो फिर बराबर नीचेहीकी ओर गिरता जाता है ।
विषमेष्वाविशच्चेतः सङ्कल्पयति तद्गुणान् । सम्यक्सङ्कल्पनात्कामः कामात्पुंसः प्रवर्तनम् ॥ ३२७॥
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