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________________ १०५ प्रमाद - निन्दा जिस प्रकार कुलटा स्त्री अपने प्रेमी जार - पुरुषको उसकी बुद्धि बिगाड़कर पागल बना देती है उसी प्रकार विद्वान् पुरुषको भी विषयोंमें प्रवृत्त होता देखकर आत्मविस्मृति बुद्धिदोषोंसे क्षिप्त कर देती है । यथापकृष्टं शैवालं क्षणमात्रं न तिष्ठति । आवृणोति तथा माया प्राज्ञं वापि पराङ्मुखम् || ३२५॥ जिस प्रकार शैवालको जलपरसे एक बार हटा देनेपर वह क्षणभर भी अलग नहीं रहता, [ तुरंत ही फिर उसको ढँक लेता है ] उसी प्रकार आत्मविचारहीन विद्वान्‌को भी माया फिर घेर लेती है 1 लक्ष्यच्युतं amihindi.com सद्यदि चित्तमीष द्बहिर्मुखं सन्निपतेत्ततस्ततः । प्रमादतः प्रच्युतकेलिकन्दुकः सोपानपङ्क्तौ पतितो यथा तथा ॥ ३२६ ॥ जैसे असावधानतावश ( हाथसे छूटकर ) सीढ़ियोंपर गिरी हुई खेलकी गेंद एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ीपर गिरती हुई नीचे चली जाती है वैसे ही यदि चित्त अपने लक्ष्य ( ब्रह्म) से हटकर थोड़ा-सा भी बहिर्मुख हो जाता है तो फिर बराबर नीचेहीकी ओर गिरता जाता है । विषमेष्वाविशच्चेतः सङ्कल्पयति तद्गुणान् । सम्यक्सङ्कल्पनात्कामः कामात्पुंसः प्रवर्तनम् ॥ ३२७॥ http://www.ApniHindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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