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विवेक-चूममणि
विषयोंमें लगा हुआ चित्त उनके गुणोंका चिन्तन करता है, फिर निरन्तर चिन्तन करनेसे उनकी कामना जाग्रत् होती है और कामनासे पुरुषकी विषयोंमें प्रवृत्ति हो जाती है।
ततः स्वरूपविभ्रंशो विभ्रष्टस्तु पतत्यधः। पतितस्य विना नाशं पुनर्नारोह ईक्ष्यते । सङ्कल्पं वर्जयेत्तसात्सर्वानर्थस्य कारणम् ॥३२८॥
विषयोंकी प्रवृत्तिसे मनुष्य आत्मस्वरूपसे गिर जाता है और जो एक बार स्वरूपसे गिर गया, उसका निरन्तर अधःपतन होता रहता है तथा पतित पुरुषका नाशके सिवा फिर उत्थान तो प्रायः कभी देखा नहीं जाता । इसलिये सम्पूर्ण अनर्थोंके कारणरूप सङ्कल्पको त्याग देना चाहिये। Hindi . com अतः प्रमादान परोऽस्ति मृत्यु
विवेकिनो ब्रह्मविदः समाधौ । समाहितः सिद्धिमुपैति सम्यक
समाहितात्मा भव सावधानः ॥३२९॥ इसलिये विवेकी और ब्रह्मवेत्ता पुरुषके लिये समाधिमें प्रमाद करनेसे बढ़कर और कोई मृत्यु नहीं है; समाहित पुरुष ही पूर्ण आत्मसिद्धि प्राप्त कर सकता है। इसलिये सावधानतापूर्वक चित्तको समाहित ( स्थिर ) करो।
असत्-परिहार जीवतो यस्य कैवल्यं विदेहे स च केवलः । पत्किश्चित्पश्यतो भेदं भयं ब्रूते यजुःश्रुतिः ॥३३०॥
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