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महावाक्य-विचारः अव्यक्त, अनाम और अक्षय तेज है जो स्वयं ही प्रकाशित हो रहा है ।
ज्ञातृ यज्ञानशून्यमनन्तं निर्विकल्पकम् । केवलाखण्डचिन्मानं परं तत्त्वं विदुर्बुधाः ॥२४॥
बुधजन उस परम तत्त्वको ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय इस त्रिपुटीसे रहित, अनन्त, निर्विकल्प, केवल और अखण्ड-चैतन्यमात्र जानते हैं।
अहेयमनुपादेयं मनोवाचामगोचरम् । अप्रमेयमनाद्यन्तं ब्रह्म पूर्ण महन्महः ॥२४२॥
वह ब्रह्म त्याग अथवा ग्रहणके अयोग्य, मन-वाणीका अविषय, अप्रमेय, आदि-अन्तरहित, परिपूर्ण तथा महान् तेजोमय है।
___www. महावाक्य-विचार . com तत्वं पदाभ्यामभिधीयमानयो
ब्रह्मात्मनोः शोधितयोर्यदीत्थम् । श्रुत्या तयोस्तत्त्वमसीति सम्य
गेकत्वमेव प्रतिपाद्यते मुहुः ॥२४३॥ 'तत्त्वमसि' ( छान्दो० ६ । ८) आदि वाक्योंके तत् और त्वं पदोंसे शोधन करके कहे हुए ब्रह्म और आत्माका श्रुतिके द्वारा बारम्बार पूर्ण एकत्व प्रतिपादन किया गया है। ऐक्यं तयोर्लक्षितयोर्न वाच्ययो
निगद्यतेऽन्योन्यविरुद्धधर्मिणोः । खद्योतभान्वोरिव राजभृत्ययोः
• कूपाम्पुराश्योः । परमाणुमेवाः ॥२४४
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