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आत्मस्वरूपनिरूपण शिष्य-हे गुरो ! इन पाँचों कोशोंके मिथ्यारूपसे निषिद्ध हो जानेपर तो मुझे सर्वाभाव (शून्य ) के अतिरिक्त और कुछ भी प्रतीत नहीं होता, फिर [ आपके कथनानुसार ] बुद्धिमान् पुरुष किस वस्तुको अपना आत्मा माने ?
आत्मस्वरूपनिरूपण
श्रीगुरुरुवाच सत्यमुक्तं त्वया विद्वनिपुणोऽसि विचारणे । अहमादिविकारास्ते तदमावोऽयमप्यनु ॥२१५॥
गुरु-हे विद्वन् ! तू बहुत ठीक कहता है, विचार करनेमें तू बहुत कुशल है । अरे ! जैसे अहंकार आदि तेरे विकार हैं वैसे ही उनका अभाव भी है।
सर्वे येनानुभूयन्ते यः स्वयं नानुभूयते । तमात्मानं वेदितारं विद्धि बुद्धया सुसूक्ष्मया ॥२१६॥
ये सब जिसके द्वारा अनुभव किये जाते हैं और जो खयं अनुभव नहीं किया जा सकता, अपनी सूक्ष्म बुद्धिके द्वारा उस सबके साक्षीको ही तू अपना आत्मा जान ।
तत्साक्षिकं भवेत्तत्तद्यद्ययेनानुभूयते । कस्याप्यननुभूतार्थे साक्षित्वं नोपयुज्यते ॥२१७॥
जिस-जिसके द्वारा जो-जो अनुभव किया जाता है वह सब उसीके साक्षित्वमें कहा जाता है; बिना अनुभव किये पदार्थमें किसीका भी साक्षी होना नहीं माना जाता। ..
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