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आनन्दमय कोश आनन्दमय कोश आनन्दप्रतिविम्बचुम्बिततनुत्तिस्तमोज़म्मिता स्थादानन्दमयः प्रियादिगुणक: स्वेष्टार्थलामोदयः। पुण्यस्यानुभवे विभाति कृतिनामानन्दरूपः खयं भूत्वा नन्दति यत्र साधुतनुभृन्मात्रःप्रयत्नं विना॥२०९॥
आनन्दवरूप आत्माके प्रतिबिम्बसे चुम्बित तथा तमोगुणसे प्रकट हुई वृत्ति आनन्दमय कोश है। वह प्रिय आदि ( प्रिय, मोद और प्रमोद-इन तीन ) गुणोंसे युक्त है और अपने अभीष्ट पदार्थके प्राप्त होनेपर प्रकट होती है । पुण्यकर्मके परिपाक होनेपर उसके फलरूप सुखका अनुभव करते समय भाग्यवान् पुरुषोंको उस आनन्दमय कोशका स्वयं ही भान होता है, जिससे सम्पूर्ण देहधारी जीव बिना प्रयत्नके ही अति आनन्दित होते हैं।
आनन्दमयकोशस्य सुषुप्तौ स्फूर्तिरुत्कटा । खमजागरयोरीषदिष्टसंदर्शनादिना ॥२१०॥
आनन्दमय कोशकी उत्कट ( तीव्र ) प्रतीति तो सुषुप्तिमें ही होती है, तथा जाग्रत् और खममें भी इष्टवस्तुके दर्शन आदिसे उसका यत्किश्चित् भान होता है। नैवायमानन्दमयः परात्मा
सोपाधिकत्वात्प्रकृतेर्विकारात् . । कार्यत्वहेतो.. सुकृतक्रियाया . , :
विकारसबातसमाहितत्वात् . . . . ॥२१॥
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