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मात्मज्ञान हा मुाकका उपाय
शिष्य-हे गुरुदेव ! भ्रमसे हो अथवा किसी अन्य कारणसे, परमात्माको ही जीव-भावकी प्राप्ति हुई है और उसकी उपाधि अनादि है तथा अनादि वस्तुका नाश हो नहीं सकता। 'अतोऽस्य जीवभावोऽपि नित्यो भवति संसृतिः । न निवर्तेत तन्मोक्षः कथं मे श्रीगुरो वद ॥१९५॥
इसलिये इस आत्माका जीवभाव भी नित्य है और ऐसा होनेसे इसका जन्म-मरणरूप संसार-चक्र कभी निवृत्त नहीं हो सकता; तो फिर, हे श्रीगुरुदेव ! इसका मोक्ष कैसे होगा, सो कहिये ?
आत्मज्ञान ही मुक्तिका उपाय है WWW.Ap stueganti.com सम्यक्पृष्टं त्वया विद्वन्सावधानेन तच्नृणु । प्रामाणिकी न भवति भ्रान्त्या मोहितकल्पना ॥१९६॥
गुरु-हे वत्स ! तू बड़ा बुद्धिमान् है, तूने बहुत ठीक बात पूछी है । अच्छा, अब सावधान होकर सुन । देख, मोहयुक्त पुरुषोंकी भ्रमवश की हुई कल्पना माननीय नहीं हुआ करती।
भ्रान्तिं विना त्वसङ्गस्य निष्क्रियस्य निराकृतेः। न घटेतार्थसम्बन्धो नमसो नीलतादिवत् ॥१९७॥
जो असन, निष्क्रिय, और निराकार है, उस आत्माका पदार्थोसे, नीलता आदिसे आकाशके समान भ्रमके अतिरिक्त और किसी प्रकार सम्बन्ध नहीं हो सकता। .
वि० चू०५
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