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येनैव याता यतयोऽस्य पारं
तमेव मार्ग तव निर्दिशामि ||४५ ||
उपदेश - विधि
गुरु - हे विद्वन् ! तू डरे मत, तेरा नाश नहीं होगा । संसारसागर से तरनेका उपाय है । जिस मार्ग से यतिजन इसके पार गये हैं, वही मार्ग मैं तुझे दिखाता हूँ ।
अस्त्युपायो
महान्कश्चित्संसारभयनाशनः ।
येन तीर्खा भवाम्भोधिं परमानन्दमाप्स्यसि ॥ ४६ ॥ संसाररूपी भयका नाश करनेवाला कोई एक महान् उपाय है जिसके द्वारा तू संसार-सागरको पार करके परमानन्द प्राप्त करेगा । जायते ज्ञानमुत्तमम् ।
वेदान्तार्थविचारेण तेनात्यन्तिकसंसारदुःखनाशो
भवत्यनु ||४७|| वेदान्त-वाक्योंके अर्थका विचार करनेसे उत्तम ज्ञान होता है, जिससे फिर संसार-दुःखका आत्यन्तिक नाश हो जाता है । श्रद्धाभक्तिध्यानयोगान्मुमुक्षो
मुक्ते तुन्वक्ति साक्षाच्छ्रुतेर्गीः । यो वा एतेष्वेव तिष्ठत्यमुष्य
मोक्षोऽविद्याकल्पिताद्देहबन्धात् ॥४८॥
श्रद्धा, भक्ति, ध्यान और योग इनको भगवती श्रुति मुमुक्षुकी मुक्ति साक्षात् हेतु बतलाती है । जो इन्हीं में स्थित हो जाता है 1 उसका अविद्याकल्पित देह-बन्धनसे मोक्ष हो जाता है ।
अज्ञानयोगात्परमात्मनस्तव
एव संसृतिः ।
धनात्मबन्धस्तत
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