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सूक्ष्म शरीर मनस्तु सङ्कल्पविकल्पनादिमि
बुद्धिः पदार्थाध्यवसायधर्मतः ॥१५॥ अत्राभिमानादहमित्यहङ्कुतिः
स्वार्थानुसन्धानगुणेन चित्तम् ॥९६॥ अपनी वृत्तियोंके कारण अन्तःकरण मन, बुद्धि, चित्त और अहङ्कार [ इन चार नामोंसे ] कहा जाता है। सङ्कल्प-विकल्पके कारण मन, पदार्थका निश्चय करनेके कारण बुद्धि, 'अहं-अहं! ( मैं-मैं ) ऐसा अभिमान करनेसे अहङ्कार और अपना इष्ट-चिन्तनके कारण यह चित्त कहलाता है।
पञ्चप्राण प्राणापानव्यानोदानसमाना भवत्यसौ प्राणः । स्वयमेव वृत्तिभेदाद्विकृतिमेदात्सुवर्णसलिलादिवत्॥१७॥
अपने विकारोंके कारण सुवर्ण और जल आदिके समान स्वयं प्राण ही वृत्तिभेदसे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान-इन पाँच नामोंवाला होता है।
. सूक्ष्म शरीर वागादिपश्च श्रवणादिपश्च
प्राणादिपश्चाभ्रमुखानि पश्च । बुद्धथाद्यविद्यापि च कामकर्मणी
पुर्यष्टकं सूक्ष्मशरीरमाहुः ॥९८॥ वागादि पाँच कर्मेन्द्रियाँ, श्रवणादि पाँच ज्ञानेन्द्रियों, प्राणादि पाँच प्राण, आकाशादि पाँच भूत, बुद्धि आदि अन्तःकरण
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