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बन्ध-निरूपण जिस प्रकार सूर्यके तेजसे उत्पन्न हुई मेघमाला सूर्यहीको ढंककर खयं फैल जाती है उसी प्रकार आत्मासे प्रकट हुआ अहहार आत्माको ही आच्छादित करके स्वयं स्थित हो जाता है ।
आवरणशक्ति और विक्षेपशक्ति कवलितदिननाथे दुर्दिने सान्द्रमेधे
lथयति हिमझञ्झावायुस्यो यथैतान् । अविरततमसात्मन्यावृते मूढबुद्धिं
क्षपयति बहुतुःखैस्तीव्रविक्षेपशक्तिः ॥१४५॥ जिस प्रकार किसी दुर्दिनमें (जिस दिन आँधी, मेघ आदिका विशेष उत्पात हो ) सघन मेघोंके द्वारा सूर्यदेवके आच्छादित होनेपर अति भयङ्कर और ठंडी-ठंडी आँधी सबको खिन्न कर देती है, उसी प्रकार बुद्धिके निरन्तर तमोगुणसे आवृत होनेपर मूढ पुरुषको विक्षेपशक्ति नाना प्रकारके दुःखोंसे सन्तप्त करती है।
एताभ्यामेव शक्तिभ्यां बन्धः पुंसः समागतः । याभ्यां विमोहितो देहं मत्वात्मानं भ्रमत्ययम् ॥१४६॥
इन दोनों ( आवरण और विक्षेप ) शक्तियोंसे ही पुरुषको बन्धनकी प्राप्ति हुई है और इन्हींसे मोहित होकर यह देहको भात्मा मानकर संसार-चक्रमें भ्रमता रहता है ।
बन्ध-निरूपण बीजं संसृतिभूमिजस्य तु तमो देहात्मधीरकुरो रागः पल्लवमम्मुकर्म तु वपुः स्कन्धोऽसवः शाखिकाः । नि. न...
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