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स्थूल शरीर त्वष्यांसरुधिर स्नायु मेदोमञ्जास्थि संकुलम् पूर्ण मूत्रपुरीषाभ्यां स्थूलं निन्द्यमिदं वपुः ॥ ८९ ॥
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मेद, मज्जा और
स्थूल देह अति
स्थूल शरीर
त्वचा, मांस, रक्त, स्नायु (नस), अस्थियोंका समूह तथा मल-मूत्र से भरा हुआ यह निन्दनीय है ।
पञ्चीकृतेभ्यो भूतेभ्यः स्थूलेभ्यः पूर्वकर्मणा । समुत्पन्नमिदं स्थूलं भोगायतनमात्मनः । अवस्था जागरस्तस्य स्थूलार्थानुभवो यतः ॥९०॥ पचीकृत स्थूल भूतोंसे पूर्व- कर्मानुसार उत्पन्न हुआ यह शरीर आत्माका स्थूल भोगायतन है; इसकी [ प्रतीतिकी ] अवस्था जाग्रत् है, जिसमें कि स्थूल पदार्थोंका अनुभव होता है ।
बाह्येन्द्रियैः
स्थूलपदार्थ सेवां
स्रक्चन्दन स्त्र्यादिविचित्ररूपाम् ।
करोति जीवः स्वयमेतदात्मना
तस्मात्प्रशस्तिर्व पुषोऽस्य जागरे ॥ ९१ ॥
इससे तादात्म्यको प्राप्त होकर ही जीव माला, चन्दन तथा स्त्री आदि नाना प्रकारके स्थूल पदार्थोंको बाह्येन्द्रियोंसे सेवन करता है इसलिये जाग्रत्-अवस्था में इस ( स्थूल ) देहकी प्रधानता है ।
सर्वोऽपि बाह्यसंसारः पुरुषस्य यदाश्रयः । बिद्धि देहमिदं स्थूलं गृहवद्गृहमेधिनः ॥९२॥
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