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तमागुण कामः क्रोधो . लोभदम्भाधसूया
हङ्कारेणूंमत्सराधास्तु घोराः । धर्मा एते राजसाः पुम्प्रवृत्ति
यस्मादेषा तद्रजो बन्धहेतुः ॥११४॥ काम, क्रोध, लोभ, दम्भ, असूया ( गुणोंमें दोष ढूँढ़ना), अभिमान, ईर्ष्या और मत्सर-ये घोर धर्म रजोगुणके ही हैं । अतः जिसके कारण जीव कोंमें प्रवृत्त होता है वह रजोगुण ही उसके बन्धनका हेतु है।
तमोगुण एषावृतिर्नाम तमोगुणस्य ___ww शक्तिर्यया वस्त्ववभासतेऽन्यथा । सैषा निदानं पुरुषस्य संसृते
विक्षेपशक्तः प्रसरस्य हेतुः ॥११५॥ जिसके कारण वस्तु कुछ-की-कुछ प्रतीत होने लगती है वह तमोगुणकी आवरणशक्ति है । यही पुरुषके ( जन्म-मरणरूप ) संसारका आदिकारण है और यही विक्षेपशक्तिके प्रसारका भी हेतु है।
प्रज्ञावानपि पण्डितोऽपि चतुरोऽप्यत्यन्तसूक्ष्मार्थक व्यालीढस्तमसा न वेत्ति बहुधा सम्बोधितोऽपि स्फुटम् । भ्रान्त्यारोपितमेव साधु कलयत्यालम्बते तद्गुणान् हन्तासौ प्रबला दुरन्ततमसः शक्तिमहत्यावृतिः॥११६॥
तमसे ग्रस्त हुआ पुरुष अति बुद्धिमान्, विद्वान्, चतुर और शास्त्रके अत्यन्त सूक्ष्म अर्थोंको देखनेवाला भी हो तो भी वह नाना
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