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विवेक-चूडामणि चतुष्टय, अविद्या तथा काम और कर्म यह पुर्यष्टक अथवा सूक्ष्म शरीर कहलाता है। इदं शरीरं शृणु सूक्ष्मसंज्ञितं
लिङ्गं त्वपञ्चीकृतभूतसम्भवम् । सवासनं कर्मफलानुभावकं
___ स्वाज्ञानतोऽनादिरुपाधिरात्मनः ॥१९॥ यह सूक्ष्म अथवा लिङ्गशरीर अपञ्चीकृत भूतोंसे उत्पन्न हुआ है। यह वासनायुक्त होकर कर्मफलोंका अनुभव करानेवाला है । और खस्वरूपका ज्ञान न होनेके कारण आत्माकी अनादि उपाधि है ।
स्वमो भवत्यस्य विमक्त्यवस्था ___ww स्वमात्रशेषेण विभाति यत्र । स्वप्ने तु बुद्धिः स्वयमेव जाग्रत्
कालीननानाविधवासनामिः कादिभावं प्रतिपद्य राजते
यत्र स्वयंज्योतिरयं परात्मा ॥१०॥ खप्न इसकी अभिव्यक्तिकी अवस्था है, जहाँ यह स्वयं ही बचा हुआ भासता है । खममें, जहाँ यह स्वयंप्रकाश परात्मा शुद्ध चेतन ही [ भिन्न-भिन्न पदार्थोके रूपमें ] भासता है, बुद्धि जामत्कालीन नाना प्रकारकी वासनाओंसे, कर्ता आदि भावोंको प्राप्त होकर स्वयं ही प्रतीत होने लगती है। धीमात्रकोपाधिरशेषसाक्षी
न लिप्यते तत्कृतकर्मलेशैः।
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