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स्थूल शरीरका वर्णन
मज्जा, अस्थि, मेद, मांस, रक्त, चर्म और त्वचा - इन सात धातुओंसे बने हुए तथा चरण, जंघा, वक्षःस्थल (छाती), भुजा, पीठ और मस्तक आदि अङ्गोपाङ्गोंसे युक्त, 'मैं और मेरा' रूपसे प्रसिद्ध इस मोहके आश्रयरूप देहको विद्वान् लोग 'स्थूल शरीर' कहते हैं ।
नभोनभस्वद्दहनाम्बुभूमयः
परस्परांशैर्मिलितानि
सूक्ष्माणि भूतानि भवन्ति तानि ॥ ७५ ॥
भूत्वा स्थूलानि च स्थूलशरीरहेतवः ।
मात्रास्तदीया विषया भवन्ति
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शब्दादयः पञ्च सुखाय भोक्तुः ॥७६॥
आकाश, वायु, तेज, जल और पृथिवी ये सूक्ष्म भूत हैं । इनके अंश परस्पर मिलनेसे स्थूल होकर स्थूल शरीर के हेतु होते हैं और इन्हींकी तन्मात्राएँ भोक्ता जीवके भोगरूप सुखके लिये शब्दादि पाँच विषय हो जाती हैं ।
य एषु मूढा विषयेषु बद्धा गोरुपाशेन
सुदुर्दमे ।
स्वकर्मदूतेन जवेन नीताः ॥७७৷
जो मूढ इन विषयोंमें रागरूपी सुदृढ एवं विस्तृत बन्धन से बँध जाते हैं, वे अपने कर्मरूपी भूतके द्वारा वेगसे प्रेरित होकर अनेक उत्तमाधम योनियोंमें आते-जाते हैं ।
आयान्ति निर्यान्त्यध ऊर्ध्वमुच्चैः
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