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विवेक-चूडामणि
जो बुद्धिमान् हो, विद्वान् हो और तर्क-वितर्कमें कुशल हो ऐसे लक्षणोंवाला पुरुष ही आत्मविद्याका अधिकारी होता है ।
विवेकिनो विरक्तस्य शमादिगुणशालिनः । मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासायोग्यता मता ॥१७॥
जो सदसद्विवेकी, वैराग्यवान्, शम-दमादि षट्सम्पत्तियुक्त और मुमुक्षु हो उसीमें ब्रह्मजिज्ञासाकी योग्यता मानी गयी है।
साधन-चतुष्टय साधनान्यत्र चत्वारि कथितानि मनीषिमिः । येषु सत्स्वेव सन्निष्ठा यदभावे न सिद्धयति ॥१८॥
मनस्वियोंने जिज्ञासाके चार साधन बताये हैं, उनके होनेसे ही सत्यस्वरूप आत्मामें स्थिति हो सकती है, उनके बिना नहीं ।
आदौ नित्यानित्यवस्तुविवेकः परिगण्यते । इहामुत्रफलभोगविरागस्तदनन्तरम् शमादिषट्कसम्पत्तिर्मुमुक्षुत्वमिति स्फुटम् ।
पहला साधन नित्यानित्य-वस्तु-विवेक गिना जाता है, दूसरा लौकिक एवं पारलौकिक सुख-भोगमें वैराग्य होना है, तीसरा शम, दम, उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा, समाधान--ये छः सम्पत्तियाँ हैं और चौथा मुमुक्षुता है।
ब्रम सत्यं जगन्मिथ्येत्येवंरूपो विनिश्चयः ॥२०॥ . सोऽयं नित्यानित्यवस्तुविवेकः समुदाहतः।
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