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सम्यग्विचारतः
सिद्धा रज्जुतच्चावधारणा |
अधिकारिनिरूपण
भ्रान्त्योदितमहासर्पभयदुःखविनाशिनी
भलीभाँति विचारसे सिद्ध हुआ रज्जुतत्त्वका निश्चय भ्रमसे उत्पन्न हुए महान् सर्पभयरूपी दुःखको नष्ट करनेवाला होता है । अर्थस्य निश्चयो दृष्टो विचारेण हितोक्तितः । न स्नानेन न दानेन प्राणायामशतेन वा ॥१३॥
॥१२॥
कल्याणप्रद उक्तियोंद्वारा विचार करनेसे ही वस्तुका निश्चय होता देखा जाता है; स्नान, दान अथवा सैकड़ों प्राणायामोंसे नहीं ।
अधिकारिनिरूपण
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अधिकारिणमाशास्ते
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फलसिद्धिर्विशेषतः ।
उपाया देशकालाद्याः सन्त्यस्मिन्सहकारिणः ॥ १४ ॥ विशेषतः अधिकारीको ही फल- सिद्धि होती है; देश, काल आदि उपाय भी उसमें सहायक अवश्य होते हैं ।
अतो विचारः कर्तव्यो जिज्ञासोरात्मवस्तुनः । समासाद्य दयासिन्धुं गुरुं ब्रह्मविदुत्तमम् ॥ १५ ॥
अतः ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ दयासागर गुरुदेवकी शरणमें जाकर जिज्ञासुको आत्म-तत्त्वका विचार करना चाहिये ।
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मेधावी पुरुषो विद्वानूहापोहविचक्षणः । अधिकार्यात्मविद्यायामुक्तलक्षणलक्षितः
॥१६॥