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________________ ११ सम्यग्विचारतः सिद्धा रज्जुतच्चावधारणा | अधिकारिनिरूपण भ्रान्त्योदितमहासर्पभयदुःखविनाशिनी भलीभाँति विचारसे सिद्ध हुआ रज्जुतत्त्वका निश्चय भ्रमसे उत्पन्न हुए महान् सर्पभयरूपी दुःखको नष्ट करनेवाला होता है । अर्थस्य निश्चयो दृष्टो विचारेण हितोक्तितः । न स्नानेन न दानेन प्राणायामशतेन वा ॥१३॥ ॥१२॥ कल्याणप्रद उक्तियोंद्वारा विचार करनेसे ही वस्तुका निश्चय होता देखा जाता है; स्नान, दान अथवा सैकड़ों प्राणायामोंसे नहीं । अधिकारिनिरूपण WWW अधिकारिणमाशास्ते com फलसिद्धिर्विशेषतः । उपाया देशकालाद्याः सन्त्यस्मिन्सहकारिणः ॥ १४ ॥ विशेषतः अधिकारीको ही फल- सिद्धि होती है; देश, काल आदि उपाय भी उसमें सहायक अवश्य होते हैं । अतो विचारः कर्तव्यो जिज्ञासोरात्मवस्तुनः । समासाद्य दयासिन्धुं गुरुं ब्रह्मविदुत्तमम् ॥ १५ ॥ अतः ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ दयासागर गुरुदेवकी शरणमें जाकर जिज्ञासुको आत्म-तत्त्वका विचार करना चाहिये । http://www.ApniHindi.com मेधावी पुरुषो विद्वानूहापोहविचक्षणः । अधिकार्यात्मविद्यायामुक्तलक्षणलक्षितः ॥१६॥
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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