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________________ विवेक चूडामणि ज्ञानोपलब्धिका उपाय अतो विमुक्त्यै प्रयतेत विद्वान् संन्यस्तवाह्यार्थसुखस्पृहः सन् । सन्तं महान्तं समुपेत्य देशिकं तेनोपदिष्टार्थसमाहितात्मा 116 11 इसलिये विद्वान् सम्पूर्ण बाह्य भोगोंकी इच्छा त्याग कर सन्तशिरोमणि गुरुदेवकी शरण जाकर उनके उपदेश किये हुए विषय में समाहित होकर मुक्ति के लिये प्रयत्न करे । मनं संसारवारिधौ । १० उद्धरेदात्मनात्मानं योगारूढत्वमासाद्य सम्यग्दर्शन निष्ठा ॥ ९ ॥ Heroni Himal और निरन्तर सत्य वस्तु आत्माके दर्शन में स्थित रहता हुआ योगारूढ होकर संसार - समुद्रमें डूबे हुए अपने आत्माका आप ही उद्धार करे । http://www.ApniHindi.com संन्यस्य सर्वकर्माणि भवबन्धविमुक्तये । यत्यतां पण्डितैर्धीरैरात्माभ्यास उपस्थितैः ॥ १०॥ आत्माभ्यासमें तत्पर हुए धीर विद्वानोंको सम्पूर्ण कर्मों को त्याग कर भव-बन्धनकी निवृत्तिके लिये प्रयत्न करना चाहिये । चित्तस्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूपलब्धये । वस्तुसिद्धिर्विचारेण न किञ्चित् कर्मकोटिभिः ॥११॥ कर्म चित्तकी शुद्धिके लिये ही है, वस्तूपलब्धि ( तत्वदृष्टि ) के लिये नहीं । वस्तु-सिद्धि तो विचारसे ही होती है, करोड़ों कमसे कुछ भी नहीं हो सकता । +
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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