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________________ ब्रह्मनिष्ठाका महत्व किसी प्रकार इस दुर्लभ मनुष्य-जन्मको पाकर और उसमें भी, जिसमें श्रुतिके सिद्धान्तका ज्ञान होता है ऐसा पुरुषत्व पाकर जो मूढबुद्धि अपने आत्माकी मुक्तिके लिये प्रयत्न नहीं करता, वह निश्चय ही आत्मघाती है; वह असत्में आस्था रखनेके कारण अपनेको नष्ट करता है। इतः को न्वस्ति मूढात्मा यस्तु खार्थे प्रमाद्यति । दुर्लभं मानुषं देहं प्राप्य तत्रापि पौरुषम् ॥५॥ दुर्लभ मनुष्य-देह और उसमें भी पुरुषत्वको पाकर जो स्वार्थ-साधनमें प्रमाद करता है, उससे अधिक मूढ़ और कौन होगा ? वदन्तु शास्त्राणि यजन्तु देवान् . com कुर्वन्तु कर्माणि भजन्तु देवताः । आत्मैक्यबोधेन विना विमुक्ति ने सिध्यति ब्रह्मशतान्तरेऽपि ॥६॥ भले ही कोई शास्त्रोंकी व्याख्या करें, देवताओंका यजन करें, नाना शुभ कर्म करें अथवा देवताओंको भनें, तथापि जबतक ब्रह्म और आत्माकी एकताका बोध नहीं होता तबतक सौ ब्रह्माओंके बीत जानेपर भी [ अर्थात् सौ कल्पमें भी ] मुक्ति नहीं हो सकती। अमृतत्वस्य नाशास्ति वित्तेनेत्येव हि श्रुतिः । अवीति कर्मणो मुच्चरहेतुत्वं स्फुटं यतः ॥७॥ क्योंकि 'धनसे अमृतत्वकी आशा नहीं है' यह.श्रुति 'मुक्तिका हेतु कर्म नहीं है, यह बात स्पष्ट बतलाती है । http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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